रंजना सिंह"शिक्षिका" बेगुसराय बिहार

इकाई।


2- पति का नाम - शशि भूषण सिंह(व्यवसाय))


3 संतान; एक पुत्री'दिव्या रंजन(आर्किटेक्ट)


एक पुत्र; विशाल भूषण(प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी)


4- पता -ग्राम,पोस्ट-भैरवार


भाया-मिर्जापुर वनद्वार


थाना-मुफ्फसिल


जिला-बेगूसराय


 5 फोन नं. - 7761097376 , 9570182068


6 जन्म तिथि - 11 / 11 / 1976


7जन्म स्थान - मोरतर (बिहार) प्रखंड:गढ़पुरा


जिला:बेगूसराय"बिहार"


8 शिक्षा - स्नातकोत्तर(आधुनिक इतिहास)


          


         बी.एड


स्कूली शिक्षा;राँची(झारखंड)


8- व्यवसाय- शिक्षिका(उत्क्रमित मध्य विद्यालय,देवड़ा)


          गढ़पुरा"बेगूसराय"बिहार


10 साहित्यिक-उपलब्धियां 


1 नेपाल भारत मैत्री वीरांगना फाउंडेशन ,रौतहट द्वारा आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय कवि कुम्भ महोत्सव में अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सम्मानित


2 विश्व पुस्तक मेला में नारायणी साहित्य अकादमी,नई दिल्ली द्वारा सम्मानित"।


3 हिंदी भाषा साहित्य परिषद(खगड़िया) द्वारा सम्मानित


4 पुष्पवाटिका परिवार द्वारा "सारस्वत सम्मान"


5 जयमंगला महोत्सव"2018" में जयमंगला      


                फाउंडेशन द्वारा।


6 भारत उत्थान न्यास,कानपुर एवं वृंदावन शोध संस्थान द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी में 'सारस्वत सम्मान' से सम्मानित 


7 महिला सशक्तिकरण की दिशा में बेहतर कार्य करने के लिए दैनिक अखबार "प्रभात खबर "की ओर से वर्ष 2018 के लिए (बेगूसराय)"अपराजिता" सम्मान।


8 विश्व अंगिका साहित्य सम्मेलन द्वारा "कपिल सिंह मुनि अंग विभूति " सम्मान 


9 विजयानी फाउंडेशन,नई दिल्ली द्वारा सम्मानित


10 विश्व हिंदी लेखिका मंच द्वारा नारी चेतना प्रचार-प्रसार योजना के अंतर्गत प्रकाशित होने वाली साहित्य पत्रिका 'नारी शक्ति सागर" में रचनात्मक योगदान के लिए ''नारी शक्ति सागर' सम्मान से सम्मानित।


11- अनुभव


नारायणी साहित्य अकादमी ,बिहार इकाई की पूर्व अध्यक्ष


इंद्रप्रस्थ लिट्रेचर फेस्टिवल ,नई दिल्ली द्वारा बिहार प्रान्त की अध्यक्ष ।।


12 रचनाओं से सम्बंधित विवरण :-


अब तक कोई पुस्तक प्रकाशित नही हुई है परन्तु


दैनिक ,पाक्षिक,मासिक पत्र-पत्रिकाओं यथा कोसी टाइम्स,बिहार टाइम्स,हयात लेके चलो,पुष्पवाटिका ,समय प्रसंग,सरजमीं, युवाप्रवर्तक ,कानपुर से प्रकाशित होने वाली प्रतिष्ठित समाचार पत्र स्टेपआहेड, नारी शक्ति सागर साझा पुस्तक में, चैतन्य हिन्द धन्य पुस्तक में रचनाएँ प्रकाशित। रांची से प्रकाशित हिंदुस्तान,प्रभात खबर,नई दुनियां इत्यादि में आलेख,कविताएं,समीक्षा,साक्षात्कार आदि प्रकाशित ।।


अभिरुचि-शिक्षण,लेखन एवं महिलासशक्तिकरण हेतु विभिन्न तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करवाना।


लेखन विधा; दोहा, छंद मुक्त कविता,लघु कथा,आलेख ,गज़ल इत्यादि


नाम - रंजना सिंह"शिक्षिका"


 


1 -स्वाभिमानिनी सीता


तू आदि शक्ति


जगत जननी


धरित्री के अतिरिक्त


नहीं सामर्थ्य था


किसी में कि वह नौ माह


अपनी कोख में


तुझे पल्लवित कर सके।


तू धर्मपरायण


कर्तव्यपरायण


स्वाभिमानिनी


प्रखर विदुषी


अद्भुत


तार्किक सक्षमता तुझमें


जीवन रूपी


पथरीली भूमि पर भी


राह बनाने वाली


महलो में पली


कोमलांगी


जनकनंदिनी


कठिन परिस्थिति में भी


बिना विलंब किये


साहसिक निर्णय लेनेवाली


चल पड़ी


उस मार्ग


जहाँ शूल ही शूल मिले


इतना था स्वयं पर विश्वास


कि लक्ष्मण रेखा भी


कमजोर न कर सका


आत्मबल तुम्हारा


 तू तो शक्ति की श्रोत थी


चाहती तो भस्म हो जाता रावण


और तू राम के पास वापस चली आती


किन्तु चुनौतियों को स्वीकारा तुमने


 श्री राम के स्वाभिमान व पुरुषार्थ


 रक्षार्थ हेतु


सबला होकर भी


अबला सी 


प्रतिक्षा में श्री राम के


अशोकवाटिका में


अपने आराध्य श्री राम 


नाम लिखती रही


फिर भी विधाता को दया न आई


वनवास तो पूरे हुए


किन्तु जीवन आंधियो से


घिरता रहा


और तू लव-कुश की माता बन


पुनः


रघुकुल को गौरव दिया


स्वयं पर आए लांक्षण का


ऐसा प्रत्युत्तर दिया


कि इतिहास राम से पूर्व,


तेरा नाम लेता रहा


जय सियाराम।। 


 


 


2 मन की गिरह


 


 


वक्त की करवट


ख्वाहिशों के महल को


मलबों में तब्दील कर


जीवन गति


बनाए रखने के लिए


नव विकल्प की संभावनाएं 


तलाश लेगी


जिंदगी सब्र की 


थपकियों से


अंतः के विचलन को


कम करने का 


अनवरत प्रयास जारी रखेगी


मगर


बालों की सफेदी


और चेहरे पर पड़ी


सिलवटों में दबी


स्त्री मन की गिरह


उसके श्वांस संग


वफ़ा निभाकर


जीवन के साथ चली जाएगी।।


 


 


3.व्यथा सदियों की रंजना


है !मनुष्य


मैं पर्वत,सागर,अम्बर,नदी,जंगल युक्त,


सुंदर जगत निर्माण की।


हृदय सुवासित करनेवाले,


सुगंधित पुष्प,कीट-पतंग,


पशु-पक्षी,जीव-जंतु तथा


उन सबमें श्रेष्ठ बुद्धिजीवी,


का निर्माण तुम हो।


सभी जीव के जीवन-यापन हेतु,


वातानुकूलित परिवेश दिया।


कई सदियों को आत्मसात करती हुई,


बिना रुके,बिना थके ,


तुहारे साथ चलती रही,


लेकिन तुम्हारी अति लिप्सा के स्वार्थ ने,


मेरे अस्तित्व को ही छिन्न-भिन्न कर डाला।


कभी तो तुम्हारी मनमानियों की समाप्ति हो,


इसी विचार से तुम्हे सचेष्ट करती रही,


भीतर ही भीतर सुलगती रही


कभी भूचाल बन फटती रही,


कभी बाढ़ बन उमड़ती रही।


फिर भी मेरी चेतावनी व्यर्थ गई,


तुम मेरे द्वारा निर्मित इस सुंदर जगत को,


अपनी व्यक्तिगत संपत्ति समझ बैठे।


मान बैठे स्वयं को ही सर्वशक्तिमान,


तुम्हारी इन करतूतों का परिणाम,


निरीह जीव-जंतु, भूमि,जल,वायु आदि,


भुगतने लगे।


जीवों को तुमने आश्रयविहीन कर दिया।


तोड़ दी तुमने अपनी उच्छृंखलता की सीमाएँ।


धर्म,जाति, सम्प्रदाय की आड़ में,


तुमने मानवता की हत्या की,


तुम्हारे अति सुविधाभोगी स्वभाव से,


जब मेरी सांसें अवरुद्ध होने लगी,


प्रतिदान स्वरूप हमने तुम्हें दंडित किया,


आज तुम्हारी भलाई कैद रहने में ही है।


तुम कैद हो,मैं स्वच्छंद हूँ।


तुमने मुझसे दूरी बढ़ाई,


मैं तुम्हे सबसे दूर कर दी।


और हाँ सुनो---"बंद रहो अपने घर मे


मुझे मेरे साथ सुखपूर्वक रहने दो।


,""कि जरूरत नही मुझे तुम्हारी"


 


 


4 शब्द


 


 


वर्णों के संयोजन से


करता मैं आकर ग्रहण


हर्ष,विषाद,घृणा,प्रेम


भावों के भिन्न-भिन्न रूपों का


मैं करता प्रतिनिधित्व


कभी जख्म कभी मरहम बन


और कभी बनता उद्गार


 


 


संवादों का मैं आधार


मिर्ची से भी ज्यादा तीखा


और मधु से ज्यादा मीठा


जब ढल जाता मैं वाणी में


 तब जिह्वा से मुखरित होता


  पड़ता हूँ सबके कानो में


 


 


एहसासों के धागों में गूंधकर


संबोधन,सांत्वना,विश्वास बनता


कभी आशा बन निखरता


तो कभी निराशा बन बिखरता


और जब कवि कलम से निःसृत होता


अनुभूति का पर्याय मैं बनता।।


 


 


 


 


5 देहरी


 


 


बचपन का सारा


प्यार-दुलार


नोंक-झोंक


मान-मनुहार


सबकुछ तो छोड़ आयी


देहरी के उसपार


 एक नई देहरी 


पार करने के लिए


साथ अपने


 अरमानों की पोटली


बाँध लायी थी


जिसे खर्च दी


मकान को घर बनाने में


कभी पति का हौसला बन


कभी सास-श्वसुर का सहारा बन


कभी सृजन-धारा बन


-'तन्मयता


"हाँ"


इसे भी तो


कई हिस्सों में बांट रखी


कभी दाल की छौंक में


कभी डिटर्जेंट में डूबे कपड़ों में


कभी त्योहारो के पकवानों में


कभी बच्चों के


 भविष्य निर्माण में


ताकि देहरी पर उकेरी


रंगोली की तरह


जीवन की सुंदरता


विद्यमान रहे


रह भी जाए शेष कुछ


तो मन का अरमान रहे


क्योंकि


उड़ान के बाद की थकान


मिटती है देहरी पर आकर ही


जो अंतर्मन को


सुकून से भर देती है।।


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