रश्मि लता मिश्रा

मंगल कारक हैं।


 शंकर बालक हैं ।


मंदिर मूरत है ।


मोहक सूरत है।


 


मोदक चाह रही।


 पैजन बाज रही।


 कीर्तन गान करें


 मंडप साज रहे।


 


 


मूषक आप चढ़ो ।


आसन ओर बढ़ो।


 आकर भोग चखो ।


संतन लाज रखो।


 


दीनन दान मिले।


लेकर आज चले ।


अंधन नैन खुले ।


जीवन राग घुले।


 


रश्मि लता मिश्रा


बिलासपुर, सी जी।6


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...