शिव शंकर आराध्य हैं
देवों के सरताज हैं
डम डम डमरू बजाते हैं
शीश से गंगा बहाते हैं
काशी उनको प्यारी है
अन्नपूर्णा छवि न्यारी है
त्रिशूल बड़ा मतवाला है।
नंदी पर मृग छाला है।
कैलाशी अविनाशी हैं
भोले घट-घट वासी हैं।
जपे राम की माला है
जग का वो खवाला है।
रश्मिलता मिश्रा
बिलासपुर
सी जी।
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