रवि रश्मि अनुभूति

प्रदत्त पंक्ति ~ 


भूचालों की बुनियादों पर 


है सपनों का घर ।


 


  नव गीत 16 , 14 मात्रा भार 


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भूचालों की बुनियादों पर 


है सपनों का घर 


दीप धरा है देहरी पर अब 


आ जाओ इस दर ।।


 


बुनियादें तो हैं पक्की ये 


सुन बिल्कुल मत डर ।


कच्चापन लेकिन यहाँ कभी 


नहीं मारता पर।।


यह सच है कि यहाँ कोई भी 


रहता न हो अमर ।।


 


पंछी चहकें सदा यहाँ ही 


उड़ते हैं फर फर ।


पवन चलती सदा इठलाती  


सनन सनन सर सर ।।


कभी - कभी गर्मी है सर्दी ।


काँपे हैं थर- थर ।।


 


दीवाने रहने के हम तो 


रहते सदा यहाँ ।


एक बार बस जाने पर फिर 


भटकें कहाँ कहाँ ।।


उड़ती हैं पतंगें भी यहाँ 


करती फ़र्र - फ़र्र ।


 


तूफ़ानी चले हवा को तो 


हम तो लेते जर ।


घर है हमारा सुन्दर सुनो 


फिर काहे का डर ।।


इसी में रहें तो गुज़रता 


ज़िंदगी का सफ़र ।।


 


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति


       मुंबई ( महाराष्ट्र ) ।


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