रवि रश्मि अनुभूति

राधा कान्हा ही जपे , कहाँ गया चितचोर ।


मोहन को ढूँढ़ूँ कहाँ , हो जायेगी भोर ।।


कुंज गली में घूमती , आन मिलो अब श्याम , 


तेरे हाथों है अभी , मेरी जीवन डोर ।।


 


ब्रज के हो तुम लाड़ले , लेते सबको मोह ।


घूमकर सब गली गली , लेते ग्वाले टोह ।।


कृष्ण प्यारे सभी तुझे , चाहें मन से आज , 


लीला करते देखते , सबको लेते मोह ।।


 


देखो घटा अभी घिरी , घिरी हुई घनघोर ।


सावन में अब रास से , बहला दो चितचोर ।।


शीतल छा बहार अभी , लो छाये आनंद , 


चित चुरा के छुपे कहाँ , पूछे मन का मोर ।।


 


(C) रवि रश्मि 'अनुभूति '


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