नई सृष्टि निर्माण करें
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मैं ही जननी , मैं ही ज्वाला
मैं ही भद्र-कराली हूँ ,
मैं ही दुर्गा , मैं चामुंडा ,
मैं ही खप्पर वाली हूँ !
सृष्टि सदा हँसती आँचल में
नर को देती काया हूँ ,
मुझसा कोई नहीं जगत में
धूप कहीं मैं छाया हूँ ।
त्यागमयी , करुणा की मूरत ,
देवी भी ,कल्याणी भी ,
मुझमें है संसार समाहित,यह
गंगा का पानी भी ।
अन्नपूर्णा ,लक्ष्मी मैं ही हूँ ,आ
जग का कल्याण करें ,
जहाँ सदा खुशियाँ बसती हैं
नई सृष्टि निर्माण करें !
ऋचा मिश्रा "रोली" (बलरामपुर)
उत्तर प्रदेश .
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