तोड़ देती है
टूट जाता है
आदमी भूख के ज़्वर से
यह ख़तरनाक है
शरीर के ज़्वर
से बहुत ज़्यादा
उतर जाता है
सामान्य ज़्वर कुछ दिनों में ही
हालांकि शरीर को
यह भी तोड़ता है
लेकिन भूख तो
कोमल- चित्त पर
हमला करता है
अंतर्मन तोड़ता है
गहरा घाव कर देता है
दिल और दिमाग दोनों में
नष्ट कर देता है विवेक को
संज्ञाशून्य हो जाता है व्यक्ति
पार कर जाता
लक्ष्मण- रेखा
अपने ही सिद्धांतों की
मुफ़लिसी बड़े- बड़े
साधकों को तोड़ देती है
धर्म और अधर्म को
नहीं चीन्ह पाता है
सिद्धहस्त संन्यासी भी
नीलाम कर देता है अपनी आत्मा को सरे-आम
पेट की आग बुझाने के लिए
चक्रधर जैसा ज्ञानी
आत्मबिक्रेता हो जाता है
चापलूसी का नर्तन
करने लगता है दर्पी सम्राटों के
ईश्वर से भी ज़्यादा
दयालु बताता है उन्हें
मिथ्या- प्रशंसा के हथियार से लूट लेता ऐसे नृपों को
यह भूख सब कुछ कराती है सामुद्रिक आग से
भी ख़तरनाक होती है यह
खा जाती है अपने ही अंडे को भूखी नागिन
नहीं बिचार कर पाती है
जन्या हूं इसकी मैं ही
कोई ब्रहृमज्ञानी
सुदामा जैसा ही
बचा पाता है
अपने को इस लपट से
नारायण की इच्छा समझ
संतोष कर लेता है
चावल के एक दाने से ही
संपूर्णानंद मिश्र
प्रयागराज फूलपुर
7458994874
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