संपूर्णानंद मिश्र

रंग बदल लेता है इंसान


   अपनी- अपनी


 जरूरतों के मुताबिक 


गिरगिट भी रंग बदलता है


      पर उसका


 रंग बदलना स्वाभाविक होता है


हार्मोनल होता है


 प्राकृतिक होता है 


     हां कभी- कभी


 अपनी जान बचाने के लिए 


 शत्रु- दल की आंखों में धूल 


झोंकने के लिए भी होता है


     मनुष्य ने 


   रंग परिवर्तन के


  इस रण में उसे 


   पछाड़ दिया है 


 चित कर दिया है 


  महि- समर में 


  वह निश्चेष्ट पड़ा है


  इस रंग परिवर्तन में खूब प्रशिक्षण प्राप्त किया है 


आनलाइन भी शिक्षित और प्रशिक्षित होता रहता है


   इतना रंग बदलता है 


   कि कोई भी खा जाता है धोखा


   नहीं पहचान पाता है उसके 


   वास्तविक रंग- रूप को 


प्रेम के मुखौटे में छिपे स्वार्थ के विकृत चेहरे की पहचान 


   नहीं कर पाता है


      निष्णात होता है 


     रंग परिवर्तन में 


       गढ़ लेता है 


   परिभाषा भी प्रेम की


     बिछा देता है


   जाल कुछ दानों के


    फंसा लेता है 


उन निश्चछल कबूतरों को 


 जो भूख की ख़ातिर


     हो जाते हैं अंधे


   नहीं देख पाते हैं 


प्रेम की मलाई में


 प्रच्छन्न अपनी मृत्यु को


और किसी क्रूर बहेलिए का


   बन जाते हैं शिकार 


 


संपूर्णानंद मिश्र


प्रयागराज फूलपुर


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