संपूर्णानंद मिश्र

बचाती है विध्वंस से 


सृजनात्मकता सबको


रचती है एक नई दुनिया 


 जहां फ़र्क की भट्ठी में 


झोंकने से बचाया जा सकता है


 अमीरी और ग़रीबी को 


  ऊपर उठ जाता है 


इसको आत्मसात कर आदमी


 चावल खाकर मुट्ठी भर


 दरिद्रता दूर कर देता है


     सुदामा का 


धर्म निभाता है मित्रता का


शक्ति होती है सृजनशीलता में 


सदैव बचाती है विध्वंस से हमें 


कभी ढकेलती नहीं है


   रौरव नरक में 


  जीवन तलाशता है


  निर्माण में ही


नहीं मन में भाव आता है 


घोंसले को नष्ट करने का 


मुक्त हो जाता है सारे बंधनों से 


जल जाती है दर्प की रस्सियां 


उस सृजनात्मकता की आंच में


   भूमिका निभाता है 


   एक कुशल शिल्पी की 


    गढ़ने लगता है 


 अनगढ़ पत्थरों को


  प्राण फूंक देता है उसमें


   एक नव जीवन का 


   कोमल स्पर्श से 


उद्धार हो जाता है अहिल्या का 


अर्थ मिल जाता है जीवन का


 अंतर समझने लगती है 


     वह देवी 


    राम और इंद्र में 


ढूंढने लगता है स्वयं को सृजनशील व्यक्ति 


एक नए उद्देश्य के लिए 


खपा देता है सारी ज़िन्दगी 


मुक्त हो जाता है सारे द्वेष से 


  ढह जाती है 


सारी दीवारें भेद भाव की


समाहित हो जाती है 


   वह बूंद 


उस महासागर में 


 जहां प्राप्ति होती है 


 असीम आनंद की !


 


संपूर्णानंद मिश्र


प्रयागराज फूलपुर


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