कोख की आवाज
कोख में पल रही बेटी
मां से कह रही है
अपनी व्यथा
सुनो मेरे जीवन की कथा
नहीं जन्म लेना चाहती
तुम भी मुझे पाकर नहीं
खोना चाहती
कुछ दिन खेलकर
पढ़ने लिखने
लग जाऊंगी
थोड़ी बड़ी होने पर
ससुराल चली जाऊंगी
न हीं रखेगा कोई आपकी
तरह मेरा ख्याल
दहेज की खातिर
रोज़ ताने सुनने पड़ेंगे
खुद से ही मन की
बात भी कहने पड़ेंगे
तुम भी दर्द के आंसू
चाहकर भी नहीं
पोछ पाओगी
घुट घुटकर जीवन
जीना पड़ेगा
अपमान का बिष
निरंतर पीना पड़ेगा
अगर दहेज की मांग की
कसौटी पर खरी नहीं
ऊतर पाऊंगी
तो फिर जिंदा ही
जला दी जाऊंगी
अगर कहीं इससे बच गयी
तो किसी वहशी दरिंदों की
बलि चढ़ जाऊंगी
मुझे इस धरा पर मत लाओ
एक उपकार कर दो मां
कोख को ही सूना कर दो
बाहर नर भेड़िए घूम रहे हैं
किसी मां की कोख सूंघ रहे हैं
मुझे इस धरा पर मत लाओ मां !
सम्पूर्णानंद मिश्र
वरिष्ठ प्रवक्ता हिंदी
प्रयागराज फूलपुर
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