मिलाकर प्रेम से नजरें हमें हरबार मिलती है ,
खिले वो देख के हमको कली ज्यों डाल खिलती है।
दिखाती है अदाएँ वो हमें जब सामने आती ,
नयन हम से मिलाती है हमें वो प्यार करती है।
दबाना दाँत से अपने गुलाबी होंठ ये उसका ,
इशारों से हमें तब पास वो अपने बुलाती है।
नयन के कोर से हमको दिवाना वो बना बैठी ,
नयन से तीर वो मेरे हृदय के पार करती है।
तुम्हारे रूप के जलवे निहारे चाँद वो नभ से ,
हुई बरसात के तो बाद तू दुगुनी निखरती है।
संदीप कुमार विश्नोई"रुद्र"
गाँव दुतारांवाली तह0 अबोहर पंजाब
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