संगीता श्रीवास्तव सुमन

मद्धम मद्धम बारिश की इन बूंदों का कहना है 


भीगे बादल से मिलकर इन झरनों को झरना है |


आते जाते हर मौसम की पीड़ा को हरता हूँ  


मन की अगन बुझाने वाले मेघों का कहना है ||


 


रिमझिम रिमझिम जब ये सावन छूता है तन मन को 


पोर पोर सकुचाती वसुधा तकती है उपवन को |


उजली उजली सी हरितिमा नवश्रृँगार करती है 


साजन की यादों की बिंदी माथे पर रखती है ||


इंतज़ार की सब घड़ियों में मुझको ही रहना है


मद्धम मद्धम बारिश की इन बूंदों का कहना है ......


 


गड़गड़ करती बिजली जब घन घन में होड़ मचाती 


बारिश की छमछम में तब पायलिया शोर मचाती |


मतवाला कजरा बह बह जब करता है मनमानी 


भीगे मन की कँदराओं से टपके टप टप पानी ||


बैरागी मन भी अकुलाता जिसको तप सहना है 


मद्धम मद्धम बारिश की इन बूंदों का कहना है .....


 


फूलों की डाली बन झूले जब सखियों सँग कजरी 


महक महक जाती है गोरी अंग अंग भर कजरी। 


रंग बिरंगे फूलों पर यौवन कुछ इठलाता है 


बहती है जब पुरवाई हर सावन मधुमाता है |


चंचल शोख हवा के कानों ने रुनझुन पहना है  


मद्धम मद्धम बारिश की इन बूंदों का कहना है .....


 


@संगीता श्रीवास्तव सुमन


 छिंदवाड़ा मप्र


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