संजय जैन

न हम हिन्दू न हम मुस्लिम


और न सिख ईसाई है।


हिंदुस्तान में जन्म लिया है तो 


पहले हम हिंदुस्तानी है।


आज़दी की जंग में 


इन सब ने जान गमाई थी।


तब जाकर हमको ये


आज़दी मिल पाई थी।


कैसे भूल उन सब को


वो भी हमारे बेटे थे।।


 


पर भारत माँ अब बेबस है


और अंदर ही अंदर रोती है।


अपने ही बेटों की करनी पर 


खून के आंसू पीती है।


धर्म निरपेक्षय देश हम 


सब ने मिलकर बनाया था।


पुनः खण्ड खण्ड कर डाला 


अपने देश बेटों ने।।


क्या हाल बना दिया


अपनी भारत माँ का अब।।


 


कितनी लज्जा कितनी शर्म 


आ रही है अपने बेटों पर।


भारत माँ रोती रहती 


एक कोने में बैठकर।


क्या ये सब करने के लिए


 ही हमने आज़दी पाई है।


और धूमिल कर डाले


आज़दी के उन सपनों को।


और मजबूर कर दिया


अपनो की लाशों पर रोने को।।


 


चल कहाँ से थे हम


कहाँ तक आ पहुंचे।


और कहां तक गिरना है


तुम बतला दो बेटों अब।


भारत माँ के बेटों को 


क्या बेटों के हाथों मरना है। 


नही चाहिए ऐसी आज़दी


जो भाइयों को लड़वाती है।


नही चाहिए ऐसी आज़दी 


जो अपास में लड़वाती है।


और मरे कोई भी दंगो में


पर माँ को ही रोना पड़ता है।


और बेटों की करनी पर 


शर्मिदा होना पड़ता है।


शर्मिदा होना पड़ता है।।


 


संजय जैन (मुम्बई) 


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