संजय जैन

कितना पवन दिन आया है।


सबके मन को बहुत भाया है।


कंस का अंत करने वाले ने,


आज जन्म जो लिया है।


जिसको कहते है जन्माष्टमी।।


 


काली अंधेरी रात में नारायण लेते।


देवकी की कोक से जन्म।


जिन्हें प्यार से कहते है।


कान्हा कन्हैया श्याम कृष्ण हम।।


 


लिया जन्म काली राती में, 


तब बदल गई धरा।


और बैठा दिया मृत्युभय,


कंस के दिल दिमाग में।


भागा भागा आया जेल में,


पर ढूढ़ न पाया बालक को।


रचा खेल नारायण ने ऐसा, 


जिसको भेद न पाया कंस।।


 


फिर लीलाएं कुछ ऐसी खेली।


मंथमुक्त हुए गोकुल के वासी।


माता यशोदा आगे पीछे भागे।


नंदजी देखे तमाशा मां बेटा का।।


 


सारे गांव को करते परेशान, 


फिर भी सबके मन भाते है।


गोपियाँ ग्वाले और क्या गाये, 


बन्सी की धुन पर थिरकते है।


और मौज मस्ती करके, 


लीलाएं वो दिख लाते है।


और कंस मामा को,


सपने में बहुत सताते है।।


 


प्रेम भाव दिल में रखते थे,


तभी तो राधा से मिल पाए।


नन्द यशोदा भी राधा को, 


पसंद बहुत किया करते थे।


गोकुल वासियों को भी,


राधा कृष्ण बहुत भाते थे।


और प्रेमी युगलों को भी,


कृष्ण राधा का प्यार भाता है।।


 


संजय जैन (मुम्बई)


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