संजय जैन (मुम्बई)

*संगनी का साथ..*


विधा : गीत


 


मैं अब कैसे बतलाऊँ, 


अपने बारे में लोगो।


कैसे करूँ गुण गान, 


अपने कामो का मैं।


बहुत कुछ सीखने को, 


मिला मुझे यहाँ पर।


और निकाले जीवन के, 


30 वर्ष यहाँ पर।।


 


मिला सब कुछ जीवन में,  


जो भी चाहा था हमनें।


करू कैसे मैं इंकार की,  


मिला नहीं अपनों का प्यार।


जो किये थे पूर्व जन्म में,  


कुछ अच्छे कर्म हमने।


तभी तो मिला है मुझको, 


आप सब से इतना प्यार।।


 


अब फिरसे शुरू करूँगा,


नई पारी की शुरुआत।


इस पारी में हमें मिलेगा,   


जीवनसंगनी का साथ।


पूरे जीवन करती रही, 


वो सब लोगो का ख्याल।


अब बारे मेरी आई है, 


रखूँगा उसका में ख्याल।।


 


उम्र के इस पड़ाव पर,


नहीं मिलता किसीका साथ।


सभी अपने जीवन को,  


जीते है अपने अपने अनुसार।


सही में हम दोनों को, 


मिला जीने का ये अवसर।


तो क्यों शामिल करे हम,  


औरो को इस कार्य में।।


 


निभाएंगे हम दोनों किये थे,


जो एक दूसरे से जो वादे।


सुखदुःख की हर घड़ी में, 


रहेंगे साथ अब हम दोनों। 


जिंदगी को संग जीने की, बहुत बड़ी सच्चाई है।


इसे जितने जल्दी तुम, 


समझ लोगे तुम प्यारो।


हकीकत खुद व्य करेगी, 


समय के आने पर।।


 


जय जिनेंद्र देव की


संजय जैन (मुंबई ) 


30/07/2020


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