संजय जैन मुम्बई

न कोई मेरा है 


न ही में किसका।


आया हूँ में अकेला


तो अकेला ही जाऊंगा।


तो फिर क्यों किसी से


बनाये हम यहाँ संबंध।


सभी की सोच नहीं होती 


लोगो मेरे जैसी।


कितना जीना है हमको


और कब हम मर जायेंगे।


किसी को भी ये बाते 


जिंदगी की पता नहीं होती।


इसलिए तो हर इंसान 


जीवन जीता है मस्ती से।


और सारे यश आरामो को


भोगता अपने जीवन में।


यदि जीने मरने का समय


पता चल जाएगा उसको।


तो जिंदगी मस्ती से जीयेगा


या समय से पहले मर जायेगा।


विधाता ने यही तो राज


सभी से छुपा के रखा है।


और सभी की जिंदगी को


संसार में उलझा रखा है।


इसलिए उस चक्र में


सभी लोग जीते है।


और कुछ अच्छे तो 


कुछ बुरे कर्म वो करते है।


तभी तो स्वर्ग नरक को


सभी यही पर भोगते है।


जो समझ जाता है मानव धर्म 


वो अच्छे से जीवन जीता है।


तभी तो वो दान दया के 


 पथ पर चलता है।


और अपना अगला भव


यही पर निश्चित करता है।


और संसार में अकेला 


आता और जाता है।।


 


जय जिनेन्द्र देव 


संजय जैन मुम्बई


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