संजय जैन (मुम्बई)

*अपना राग आलापों..*


विधा : कविता


 


लिखे वो लेखक 


पढ़े वो पाठक।


जो पढ़े मंच से


वो होता है कवि।


जो सुनता वो 


श्रोता होता है।


यही व्यवस्था है


हमारे भारत की।


लिखने वाला कुछ भी


लिख देता है।


पढ़ने वाला कुछ भी 


पढ़ लेता है।


और कुछ का कुछ


अर्थ लगा लेता है।


पर सवाल जवाब का 


मौका किसे मिलता है?


यही हालात आजकल


हमारे महान देश का है।


न कोई सुनता है


न कोई कुछ कहता है।


अपनी अपनी ढपली 


हर कोई बजता रहता है।


और अपनी धुन में


वो मस्त रहता है।


इसलिए अब हिंदुस्तान में 


संवाद खत्म हो गया है।


और भारत को विश्वस्तर पर पीछे कर दिया है।


जिसका सबसे ज्यादा असर,


हिंदी साहित्य पर पड़ा है।


और भारत की संस्कृति


व इतिहास लुप्त हो रहा है।


मंदिर मस्जिद गुरूद्वरा तक भी 


अब धर्म नही बचा है।


और इंसानियत का मानो


जनाजा निकल चुका है।।


 


जय जिनेन्द्रा देव की


संजय जैन (मुम्बई)


08/08/2020


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...