संजय जैन

किसको ढूंढ रहें हो


 


कल से कल तक में


आज को ढूंढ रहा हूँ।


जीवन के बीते पलो को,


आज में खोज रहा हूँ।


शायद वो पल मुझे


आज में मिल जाये।।


 


बीत हुआ समय,


कभी लौटकर नही आता।


मुंह से निकले शब्द,


कभी वापिस नही आते।


इसलिए बहुत तोलमोल कर,


शब्दो को सदा बोलना चाहिए।


जिससे सुनने वाला आपकी,


वाणी से आपका हो जाये।।


 


दिल और मन 


बहुत छोटे होते हैं।


दोनों पर वाणी का बहुत, जल्दी असर होता हैं।


जिससे कभी कभी बड़े, दुश्मन भी दोस्त बन जाती हैं।


और कभी कभी बने बनाये,


रिश्ते भी बिगड़ जाते हैं।।


 


वैसे तो इस युग में कोई, 


किसी का होता नहीं।


पर भी कुछ झूठे और


मायाचारी रिश्ते होते हैं।


जो दिल दिमाग और,


मन से सोचता हैं।


वो कलयुग में भी जीवन, 


हंसते खिलखिलाते जीत हैं।।


 


संजय जैन (मुम्बई)


जय जिनेन्द्र देव की


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...