बलिदानों भूल ही सब हुए प्रखर ,
उर में लिए हुए छल कपट !
नीले अम्बर के नीचे है खड़ा तिरंगा ,
स्वेत प्रखर उर लिए हुआ सतत् प्रहत !
किसने समझा किसने है जाना ,
इसकी पीड़ा को अपना माना !
नित्य खड़ा ये आहें भरता ,
रह गया अब बन भीड़ा !
भूल गए सब निर्वासन को ,
बहनों की चीख-पुकारों को !
नित्य लिए स्वाद अपने उर में ,
राष्ट्र पिता बन भटके जग में !
सब मिल अब करों जयघोष ,
वंदेमातरम् का ही करो उद्धोष !
है वतन से अगर तुम्हें प्रेम ,
आओ मिल करें इसे अजेय !
_____संजय निराला ✍️
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