जज्बा हो कुछ कर दिखाने की हर मुश्किल से पार पाने की।
चट्टानों से भी फौलादी हो सीना जुनून हो दुश्मनों से टकराने की।
दुश्मन कोई और नहीं है सच में जरूरत है अपने भीतर बैठे शैतान को मिटाने की ।
कम नहीं आंखों किसी को कभी गूढ़ ये भी हो, हर किसी को सम्मान देने की ।
सोच हो अपनी यूं विकसित विश्व भी आतुर हो
भारत से कुछ सिखाने की ।
जज्बा हो कुछ कर दिखाने की हर मुश्किल से पार पाने की।
संतोष कुमार वर्मा ' कविराज '
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें