सत्यप्रकाश पाण्डेय

क्यों पथभ्रष्ट हुआ तू प्राणी,धन धाम के लिए


बनी मिट्टी की यह काया, श्मशान के लिए


 


तू मिथ्या ही भरमाया, ये जीवन नरक बनाया


करनी थी गिरा अलंकृत, औ कंचन जैसी काया


 


कर्तव्य विमुख हुआ तू, झूठी शान के लिए


बनी मिट्टी की यह काया, श्मशान के लिए


 


कर मुरलीधर पै भरोसा, था जीवन सफल बनाना


भव ताप मुक्त हो करके, शुभकर्मों से महकाना


 


तू डाल मोह का फंदा, चला कल्याण के लिए


बनी मिट्टी की यह काया, श्मशान के लिए


 


युगलरूपाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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