नर का दिल..............
किस दिशा में जा रहा है जन
कुछ भी समझ न आता है
बदहवास सी हुई जीवन शैली
पल पल दिखता घबराता है
जीवन रहगुज़र में व्याकुल सा
वह दिखे ताकता इधर उधर
हर पल रिश्तों से आशंकित सा
झुकी झुकी सी रहती नजर
अराजकता का दंश झेल रहा
आमदनी का दिखे न स्रोत
न्याय की खातिर दर दर भटके
चारों ओर दीखती है मौत
जिनके पास सत्ता और शक्ति
उनकी ही है जीवन शैली
कीट पतंगों जैसा जीवन ढंग
दीन दरिद्र की मति मैली
किसे कहें कोई मन की पीड़ा
कौंन किसी की यहां सुने
भोग रहे है प्रारब्ध समझ कर
भाग्य मान कर सिर धुने
कब लौटेंगे वह दिन भगवन
नर की नर से होगी प्रीति
दया धर्म औ विश्वास हृदयों में
नर का दिल नर लेगा जीत।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें