अदभुत रूप तुम्हारा मोहन
आकर्षित जग को करता
हतास निराश जग जीवन के
हृदय को प्रमुदित करता
अंधकार से घिर जाता मानव
जब दिखती न कोई राह
परम् ज्योति हे परम् प्रकाशक
तब बनते तुम्ही हमराह
जीवन मूल्यों के आधार तुम्ही
नाथ तुम्ही सृष्टि संचालक
अज्ञान ग्रस्त अबोध सत्य के
स्वामी बन जाओ चालक।
श्री माधवाय नमो नमः
सत्यप्रकाश पाण्डेय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें