मेरी जिंदगी की डोर अब तेरे हाथों में
मेरा पल पल बंधा है तेरे जज्बातों में
मुझ विरही चातक को हो स्वांति बूंद
मन लालायित रहता प्रेम बरसातों में
बहुत उधारी बढ़ गई तुम पै मेरे प्यार की
लिख दूं प्रियतमा उसे दिल के खातों में
कितनी चाहत दिल में तेरे प्रति सजनी
कैसे व्यक्त करें उसे बातों ही बातों में
नहीं जी पायेंगे हम तेरे बिना जग में
सत्य सो नहीं पाता बिन तेरे रातों में।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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