सत्यप्रकाश पाण्डेय

है मेरी जिंदगी मेरा प्यार..


 


मानो बुझता दीपक हूं मैं


सूख गया आशा का तेल


लौ व्यथित झंझावातों से


था समापन पर जग खेल


 


प्राण रूप बाती जलकर


खेल रहे थी अंतिम दांव


टिमटिमाती सी लपटें भी


मानो चल रही उल्टे पांव


 


एक दुःखों की हवा तेज


दूजा कष्टों की भीषणता


उमड़ घुमड़ मेघ गर्जना


त्याग रहा मानो निजता


 


मद्विम हुई जीवन ज्योति


घोर निराशा मुझको घेरे


पुनः प्रखरता कैसे आये


रिक्तपात्र को स्नेह विखेरे


 


घोर निराशा लिए हिय में


खोज रहा आशा किरणें


स्नेह आपूरित प्राण दीप


जीवन बाती लम्बी करने


 


देख टूटती मेरी सांसों को


प्राची सा लेकर आलोक


मेरे व्रण मरहम से भरने


और मिटाने जीवन शोक


 


करने प्रज्ज्वलित लपटें


आई सुनहली उषा बनके


नहीं अकेले सत्य यहां पै


साथ रहूँ में ज्योति बनके


 


जीवन दायिनी बन मेरी


आई थामने दामन मेरा


प्रेम तेल से भर भाजन


दिया मुझको नव सवेरा


 


मेरी जीवन संगिनी वह


है मेरे सपनों का आधार


प्रेम मुहब्बत व हमसफ़र


है मेरी जिंदगी मेरा प्यार।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...