सत्यप्रकाश पाण्डेय

इससे बड़ा न धर्म कोई...


 


भूखे को भोजन पिला प्यासे को पानी


इससे बड़ा न धर्म कोई सुन ले रे प्राणी


 


मन्दिर मस्जिद जाकर पढले मंत्र नमाज


चारों धाम की यात्रा कर बना नया समाज


 


संतुष्ट नहीं नर तुझसे व्यर्थ है जिंदगानी


इससे बड़ा न धर्म कोई सुन ले रे प्राणी


 


दीन हीन का बन आश्रय हर उनके संताप


दिल दुखाकर किसी का मत ओढ़े तू पाप


 


परोपकार ही मानव है तेरी सच्ची कहानी


इससे बड़ा न धर्म कोई सुन ले रे प्राणी


 


व्यर्थ गया तेरा जीवन द्वेष और द्वन्द में


मानव को मानव न समझा तूने घमंड में


 


झूठी ही शान में बीती मूरख तेरी जवानी


इससे बड़ा न धर्म कोई सुन ले रे प्राणी


 


बन मसीहा धरती पे हर ले पर पीड़ा


दीन दरिद्र की सेवा में आये न ब्रीड़ा


 


अपने सदकर्मों की छोड़ ऐसी निशानी


इससे बड़ा न धर्म कोई सुन ले रे प्राणी।


 


सच्चिदानंद रूपाय नमो नमः


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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