हर जीवन में दर्द बढ़ता ही जा रहा है
व्यथित है दुनियां कोरोना सता रहा है
कुछ तरस गये हैं अपनों से मिलन को
पीड़ित हैं कुछ दो जून के भोजन को
कहीं रोजगार तो कहीं चैन छिन गया
हे माधव मानव का सकून छिन गया
करो स्नेह की बारिश श्री बांकेबिहारी
जग से यह पीड़ा हरो बृषभानु दुलारी
सत्य की जिंदगी भी नाथ तेरे हवाले
दुःख से रखो या सुख से हे मुरली वाले।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें