तुम्ही हो मेरा जीवन धन
हृदयांगम करलो सजनी
मेरे हिय उपवन के फूल
मिल जायेगा तेरा आश्रय
जीवन हो जाये अनुकूल
अंतर्मन के भाव प्रिय मैं
कैसे शब्दों में व्यक्त करूँ
तरल तरंगित स्नेह नीर मैं
सदा आँखों में लिए फिरूँ
तेरी छवि बसा के दिल में
मन के मनिका फेर रहा
हे अन्तरंग में स्थित मूर्ति
मनखग तुझे ही टेर रहा
भावों की प्रखर ज्योति से
झिलमिल है रोम रोम मेरे
मृदुल मनोहर पिक वाणी
गुंजायमान श्रुति लोम मेरे
मेरे आसक्त हिय को प्रिय
तुम दो प्रेम का आलम्बन
टूट न जाये सत्य प्रियतमा
तुम्ही हो मेरा जीवन धन।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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