कृष्ण स्मरण करले तू बन्दे
मिट जायेंगे भव ताप रे
सदभावों को विश्राम मिले
ये जीवन हो निष्पाप रे
मृत्युलोक में आकर प्राणी
तेरे धाम को भूल गया
झूठे जग की माया में फस
मोह जाल में झूल गया
अनजाने सफर पर चले जीव
है कर्तव्य का ज्ञान नहीं
कौंन खरा और कौंन है खोटा
कुछ भी तो पहचान नहीं
कर्तव्य विमुख भयभीत हुआ
नारायण उसे संभाल रे
सदभावों को विश्राम मिले
ये जीवन हो निष्पाप रे।
सत्यप्रकाश पाण्डेय
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