सत्यप्रकाश पाण्डेय

घर घर आसुरी वृत्तियां जन्मी


तुम आ जाओ मनमोहन    


व्यथित होके रो रही मानवता


रक्षक बनके करो दोहन


   


कर्तव्य विमुख होकर मानव


प्रभु अनीति की राह चले


शुभकर्मों को देकर तिलांजलि


सदहृदयों को नित छले


 


कंश जरासंध शिशुपाल यहां


मानवमूल्यों का हनन करें


नित अबलाओं के चीर हरण


शिशुओं का वे दमन करें


 


वन वन घूम रहे साधु पाण्डव


कौरव कर रहे नंगा नाच


कपट पासे फेंक रहे हैं शकुनि


दुर्योधन के कटु नाराच


 


सन्त हृदयों पर रहम करो प्रभु


एक बार पुनः आ जाओ


छल कपट के काट के बंधन


स्व सत्ता का भान कराओ।


 


श्री युगलरूपाय नमो नमः


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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