सत्येन्द्र कुमार यादव 


क्षेत्र - कमासिन, जिला - बाँदा


राज्य - उत्तर प्रदेश २१०१२५


पद - विद्यार्थी 


संस्था - जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय चित्रकूट उत्तर प्रदेश 


मोबाइल नंबर - ७३१०२२५०६९


ईमेल - satyendra7310225069@gmail.com


सम्मान - कलमकार साहित्य सम्मान, दोहा सम्मान और दैनिक जागरण सहित अन्य पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएं 


विधा- दोहा 


 


पंगु दिखे कानून अब, होता है व्यभिचार। 


होगा आखिर कब तलक,ऐसे अत्याचार।।


 


आना सखे चुनाव फिर, होगें खड़े प्रधान। 


कहीं मिलेंगे नोट तो, कहीं मिलेगा पान।। 


 


कोट पहन कर लाम ले, आते जोड़े हाथ। 


बनना मुझे प्रधान है, मिल जाए गर साथ।।


 


 देंगे साथ जरूर हम, इतना सुनिए नाथ। 


कहीं भूल जाना नहीं, वोट मिले जब हाथ।। 


 


नहीं अगर विश्वास है, लो थामो अब नोट। 


लेकिन इतना गौर कर, देना हमको वोट।। 


 


नहीं नहीं हमको सुनो, नहीं नोट की प्यास। 


रहती केवल आपसे, सदा प्रेम की आस।।


 


बात नहीं है आपकी, सुनिए ग्राम प्रधान। 


बहुतों को देखा सुना, कहा इसे मैं जान।।


 


चले शुरू से हम नहीं, कोई ऐसी चाल। 


भले न हमको मिल सके, रोटी कपड़ा दाल।। 


 


स्नान ध्यान पूजा करें, करते मानस पाठ। 


कलह करें घर में सदा, देते गाली साठ।। 


 


रामचरित पढ़ते अगर, करो राम गुणगान।


धारण कर फिर रामगुण, बन जा तू भगवान।। 


 


रहते भाई घर अगर, पिता बँटाओ हाथ। 


शेष जिंदगी और कुछ, देंगे कब तक साथ।। 


 


करते करते काम नित, शिथिल हुए सब अंग।


 लानी होगी समझ अब, करो न इनको तंग।। 


 


लोग करें वैसे यहाँ, खूब धर्म की बात। 


मगर सोचते अहर्निश, मिल जाए कब घात।। 


 


दूर कोरोना से रखे, साफ सफाई मीत। 


हाथ मिलाने से डरो, पार करोगे जीत।। 


 


भारत आया है अगर, डरो ना इससे मित्र। 


मात दिलाएंगे इसे, जिसका दिखे ना चित्र।। 


 


मास्क पहने काम से, उतना जाएं आप। 


जिससे भूखों ना मरें, और न हो संताप।। 


 


हवा में फैले न कभी, रक्तबीज का रोग। 


बचे रहें अफवाह से, करते हैं जो लोग।। 


 


ताजा भोजन कीजिए, रहो स्वस्थ भरपूर। 


तभी करोना आपसे, भागेगा कुछ दूर।।


 


बंधु दूर जाना नहीं, छोड़ कहीं घर आप। 


नीच करोना है अभी, बना हुआ अभिशाप।। 


 


कलयुग भी अब देखिए, करने लगा धमाल। 


वंशीधर अवतार लो, विपदा बड़ी कराल।। 


 


कोरोना के चक्र से, बचा न कोई आज ।


चाहे कोई रंक हो, चाहे हों सरताज।। 


 


 


डाॅक्टर होते हैं यहाँ, ईश्वर दूजा रूप। 


अर्पित करता मैं इन्हें, धन्यवाद की धूप।।


 


फर्ज निभाने में नहीं, करें कभी ये चूक। 


गंभीर हाल में सदा, करते बात सलूक।। 


 


धन्यवाद ज्ञापित करूँ, डाॅक्टर बारम्बार। 


छोड़ कपट छल छंद जो, स्वस्थ करें परिवार।।


 


कठिन समय में आप ही, तुरत बनें भगवान। 


बिना आपके फिर कहीं, मिलता नहीं निदान।। 


 


घर से अगर कहीं चलूँ, माँ हो जाती खिन्न। 


टीस मन में भरे हुए, देती चीजें भिन्न।। 


 


जितना बस उनका चले, इच्छा करतीं पूर।


जितना चाहे हम कहें, खूब बडा़ भरपूर।। 


 


दुखिया माता देख हम, हो जाते गंभीर। 


मुख से कुछ निकले नहीं, नयनों से बस नीर।। 


 


अश्रु निकलते हैं मगर, लेता हूं मैं रोंक। 


कहता हूँ माँ जा रहा, आप रहें बेशोक।। 


 


पैर बढ़ाऊँ राह पर, रोता फिर सिसकार। 


माँ का प्रेम समुद्र सम, करिये जरा विचार।।


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