अधरों पर उठता प्रणय गान,
आशायित हो उठता विहान।
जब खुले पृष्ठ उन यादों के,
जब दिन हो सावन भादों के।
बहती मन भावों की सरिता।
तब तब मन लिखता है कविता।।
मन में नित भाव अमंद उठे
जब प्रेम हृदय बन छंद उठे।
हिय उठे कल्पना का सागर
अरमानों की छलके गागर।
जब स्वप्न पले हिय में अमिता
तब तब मन लिखता है कविता।
उर में अनुपम अनुराग उठे,
असहा नित हृदय विराग उठे,
जब पल पल पीर उभरती है,
चिर व्यथा नयन से बहती है।
जब जले चांद ज्यों हो सविता।
तब तब मन लिखता है कविता ।
सीमा शुक्ला अयोध्या।
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