समय के रथ का पहिया,
जो सवार को अपनी अनुभूतियों से
तेज और धीमी गति से चलने का
आभास करता रहता है।
पर समय सदा हीअपनी सम
गति से ही चलता जाता है।
साल दर साल आगे बढ़ता जाता है,
फिर एक दिन छोड़ जाता है वो यादें,
जो मानस पटल पर चित्रित हो जाती है,
और हम इंसान चाह कर भी,
समय को पकड़ नही पाते हैं।
क्योंकि वह निर्विरोध अपनी गति से बढ़ता जाता है।
शिवानी मिश्रा
प्रयागराज
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