लिखा स्वयं जिसने मुझे, जिससे मेरा नाम।
उस मां के श्रीचरण में,अपना पावन धाम।।01
माँ निज सुत को चूँमती, करती लाड़-दुलार।
उसकी इक मुस्कान पर, देती सब कुछ वार।।02
तन मन धन अर्पण करो, खुशियाँ भी दो वार।
फिर भी माँ का कर्ज 'शिव' सकते नहीं उतार।।03
सिर हो 'मां' की गोद में, उस पर मां का हाथ।
शिव को नित मिलता रहे,सुख यह "कामद्नाथ"।।04
मां संतति के वास्ते, हँसकर सहती पीर।
ठुकराती औलाद जब, होती बहुत अधीर।।05
हँसकर माता गर्भ में, सहती सुत की लात।
वृद्धावस्था में वही, पुत्र करे आघात।।06
माँ की ममता को नहीं, सकता कोई तोल।
त्याग, समर्पण, प्रेम की, माँ मूरत अनमोल।।07
सबके मानस पटल पर,रहती मां की छाप।
ममता रुपी सिंधु की, मत गहराई नाप।।08
छूकर माता के चरण, लेकर उनका प्यार।
सकल विश्व वो जीत ले,कभी न होवे हार।०9
स्वास्थ्य-लाभ की कामना, करुं मै आठों याम।
मिले मातु-पितु प्रेम नित, कभी न हो विश्राम।।10
छूमंतर हर दर्द को, करती माँ की फूक।
माँ का हर नुस्खा, दुआ, दोनों बहुत अचूक।।11
शिवेन्द्र मिश्र 'शिव'
मैगलगंज-खीरी (उ०प्र०)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें