शुचिता अग्रवाल शुचिसंदीप

एक है भारत एक तिरंगा फहराएं,


जोश से जन गण मन भारतवासी गाएं,


कण-कण केशरिया मिट्टी का दिखता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


धरती अम्बर पर्वत सागर झूम रहे,


लिए पताका नन्हे मुन्ने घूम रहे,


नवभारत का उदय हुआ सा  लगता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


माँ का आँचल आज खुशी से लहराया,


काश्मीर में झंडा माँ का फहराया,


खिसियाया आतंकी दर-दर फिरता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


बड़ी सफलताओं का युग अब आया है,


वतन विश्व से कदम मिला चल पाया है,


चन्द्रयान यूँ नभ पर आज दमकता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


मनसूबे दुश्मन के पूरे ना होंगे,


अभिनंदन सम रोड़े सारे तोड़ेंगे,


राष्ट्रप्रेम जन-जन में खूब झलकता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


वतन बिका ना बिकने ही अब हम देंगे,


आँख दिखाते दुश्मन का सिर काटेंगे,


'शुचिता' मस्तक माँ चरणों में झुकता है,


जश्न वतन में आजादी का दिखता है।


 


शुचिता अग्रवाल"शुचिसंदीप"


तिनसुकिया, असम


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...