नींव से निर्माण तक
जन्म से निर्वाण तक
सुख-दुख साथ है चलते
चुनौतियों के संज्ञान तक
नीड बदलते रहते हैं
प्रकृति है परिवर्तनशील
लेती है सदा परीक्षाएं
परिंदों की उड़ान तक
कोहरा हो या पाला पड़े
परिंदा अपनी उड़ान भरे
पहली किरण है भोर की
उद्यम के परवान तक
जिसने इसको साध लिया
चुनौतियों को आघात दिया
प्रकृति से करी कदमताल
जीवन की पहचान तक
सुबोध कुमार
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