कविता:-
*"साथी"*
"हारे न हारे मन से साथी,
जग में कुछ तो करो जतन।
बनी रहे मानवता जग में,
आदर्शो का न हो पतन।।
संगत मिले साधु की साथी,
पल-पल सत्य का रहे संग।
दूर होगी कटुता तन-मन की,
जीवन का निखरेगा रंग।।
छोड़ दामन अंधकार का,
उजाले का बनना अंग।
देख मोह-माया के बंधन,
साथी रह न जाना दंग।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःःः सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःः 05-08-2020
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