पहचान
अपनो को अपना कहने से,
क्यों- होता उनका अपमान?
इतने बड़े हो गये अपने,
कैसे- लेते उनका नाम?
संग-संग खेले बचपन में,
अब नही कोई पहचान।
रक्त संबंधों में भी साथी,
क्यों-हो गया ऐसा काम?
सींच नेह से जीवन-पथ को,
जिसने -दिया नव- आयाम?
ऐसे संबंधों को जग में,
मन करे पल-पल प्रणाम।।
-सुनील कुमार गुप्ता
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें