कविता:-
*"मीत"*
"बाँध ले डोर जीवन की,
कोई ऐसा मिले मीत।मिले सुख अपनो को यहाँ,
कोई ऐसा लिखे गीत।।
बाँधे सुरो संग उसको,
कोई दे ऐसा संगीत।
थामे कदमो को उनके,
साथी पल-पल सुने गीत।।
उभरे न दर्द फिर अपना,
जग में जब भी मिले मीत।
बाँटे ख़ुशियाँ उनको पल-पल,
गाता रहे ऐसा गीत।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
सुनील कुमार गुप्ता
sunilgupta.abliq.in
ःःःःःःःःःःःःःःःःःः 06-08-2020
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