अपनो का साथ निभाना है
मंज़िल न कोई मेरी यहाँ,
फिर भी तो चलते जाना है।
अनचाहे संबंधों को भी,
संग जीवन में निभाना है।।
मिले जो दर्द अपनो से फिर,
उन्हें यूँहीं भूल जाना है।
आ कर रोके कदम जो यहाँ,
उन्हें फिर गले लगाना है।।
साथी जो दे विष का प्याला,
अमृत समझ पी जाना है।
तन रहे न रहे साथी यहाँ,
अपनो का साथ निभाना है।।
सुनील कुमार गुप्ता
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