सुनील कुमार गुप्ता

अपनो का साथ निभाना है


 


मंज़िल न कोई मेरी यहाँ,


फिर भी तो चलते जाना है।


अनचाहे संबंधों को भी,


संग जीवन में निभाना है।।


मिले जो दर्द अपनो से फिर,


उन्हें यूँहीं भूल जाना है।


आ कर रोके कदम जो यहाँ,


उन्हें फिर गले लगाना है।।


साथी जो दे विष का प्याला,


अमृत समझ पी जाना है।


तन रहे न रहे साथी यहाँ,


अपनो का साथ निभाना है।।


 


सुनील कुमार गुप्ता


 


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