सुनील कुमार गुप्ता

       संस्कार


बचपन से मिलते सुसंस्कार,


मिटते सभी जीवन में-


मन छाये विकार।


सार्थक होता जीवन सारा,


महकता ख़ुशबू से-


सारा घर संसार।


संस्कारशील मानव पाता,


जीवन में अपने-


पग-पग ख़ुशियाँ अपार।


सद् संस्कारो से ही जीवन में,


महकती जीवन बगिया ,


मिलता अपनत्व-


अपनो का होता सत्कार।


सद् संस्कारो से ही तो साथी,


मिलता सम्मान-


सपने होते साकार।।"


 सुनील कुमार गुप्ता


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...