संस्कार
बचपन से मिलते सुसंस्कार,
मिटते सभी जीवन में-
मन छाये विकार।
सार्थक होता जीवन सारा,
महकता ख़ुशबू से-
सारा घर संसार।
संस्कारशील मानव पाता,
जीवन में अपने-
पग-पग ख़ुशियाँ अपार।
सद् संस्कारो से ही जीवन में,
महकती जीवन बगिया ,
मिलता अपनत्व-
अपनो का होता सत्कार।
सद् संस्कारो से ही तो साथी,
मिलता सम्मान-
सपने होते साकार।।"
सुनील कुमार गुप्ता
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