-दुनियाँ नई बसाते
कुछ तो होता जीवन में,
जिसको-फिर अपना कहते?
सुख की शीतल छाँव संग,
दर्द भी तुम यहाँ सहते।।
भूल जाते स्वार्थ अपना,
अपनो का संग निभाते।
परोपकार संग जग में,
साथी तुम कदम बढ़ाते।।
काँटे चुभते जिस पथ पर,
वहाँ फूल तुम्ही खिलाते।
कटुता न छाती फिर मन में,
तुम दुनियाँ नई बसाते।।
सुनील कुमार गुप्ता
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