पग-पग बने जीवन सहारा
दिग-भ्रमित रहा जीवन साथी,
विचारो से मिला सहारा।
छोड़ सत्य-पथ जीवन में साथी,
यहाँ फिर अपनो से हारा।।
परपीड़ा अनुभूति संग-संग,
यहाँ बीता जीवन सारा।
स्वार्थ नहीं जीवन में साथी,
परमार्थ ही बने सहारा।।
घट-घट में बसे प्रभु साथी,
क्या-सोचे मन का हारा?
अन्त:घट में बसे जो प्रभु साथी,
पग-पग बने जीवन सहारा।।
सुनील कुमार गुप्ता
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