आशा-निराशा
बहुरंगी इस दुनियाँ में,
देखा अज़ब तमाशा।
अपनो संग चले जग में,
साथी मिली निराशा।।
देकर ख़ुशियाँ जीवन में,
कुछ तो उभरी आशा।
मिले अपनत्व का संसार,
फिर छाये न निराशा।।
मिले मंज़िल अपनी यहाँ,
बनी रहे ये आशा।
छाये गम की बदली भी,
मन में न हो निराशा।।
सुनील कुमार गुप्ता
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