किसी के प्यार में पड़कर मिटा हालात हूँ मैं।
उजड़ता सा चमन हूँ और बीती बात हूँ मैं।
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कलेजा चाक करके रख दिया मेरा किसीने।
खुदी अपने लिए बनता रहा। आघात हूं मैं।
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दिलों पर टूटकर बिजली गिराती जो रही है।
डरों को पालती भीतर अंधेरी रात हूँ मैं।
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बनाता औरतों को मैं ही अबला और सबला।
उसे दासी बनाते मर्द की ही जात हूँ मैं।
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अनोखी ही हवा चलने लगी दुनिया में अब है।
दिखे अंजाम भी इसका अभी शुरुआत हूं मैं।
सुनीता असीम
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