राजा रहे जो पूर्व में अकबर महान से।
हिलते धरा गगन भी थे उनकी उड़ान से।
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वो भी नहीं टिके हैं बड़ी आन-बान थी।
सब छोड़कर यहां पे गए थे जहान से।
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बस चार दिन रहेगा यहां ठाठ बाट सब।
माया व मोह छोड़ दो तन के मकान से।
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रहता खुदा जो आसमां में कह रहा यही।
बस देखता हूं तुझको यहां मैं मचान से।
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क्या आपकी कमाई यहां हो रही कहो।
बाहर करो बुराई को दिल की दुकान से।
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सुनीता असीम
५/८/२०२०
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