सुनीता असीम

राजा रहे जो पूर्व में अकबर महान से।


हिलते धरा गगन भी थे उनकी उड़ान से।


***


वो भी नहीं टिके हैं बड़ी आन-बान थी।


सब छोड़कर यहां पे गए थे जहान से।


***


बस चार दिन रहेगा यहां ठाठ बाट सब।


माया व मोह छोड़ दो तन के मकान से।


***


रहता खुदा जो आसमां में कह रहा यही।


बस देखता हूं तुझको यहां मैं मचान से।


***


क्या आपकी कमाई यहां हो रही कहो।


बाहर करो बुराई को दिल की दुकान से।


***


सुनीता असीम


५/८/२०२०


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