बीच में फासले हैं पहले ही।
दर्द के सिलसिले हैं पहले ही।
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और उनको नहीं कुरेदो तुम।
जख्म अब तक हरे हैं पहले ही।
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क्या बनाऐं किसीको अपना अब।
ग़ैर अपने बने हैं पहले ही।
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अब तमन्ना नहीं गुलों की भी।
ख़ार दिल में खिले हैं पहले ही।
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अब जुगत है न पास आने की।
दूर तो काफिले हैं पहले ही।
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क्या शिकायत करें जमाने से।
खुद से शिकवे गिले हैं पहले ही।
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सुनीता असीम
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