सुनीता असीम

बीच में फासले हैं पहले ही।


 


दर्द के सिलसिले हैं पहले ही।


 


***


 


और उनको नहीं कुरेदो तुम।


 


जख्म अब तक हरे हैं पहले ही।


 


***


 


क्या बनाऐं किसीको अपना अब।


 


ग़ैर अपने बने हैं पहले ही।


 


***


 


अब तमन्ना नहीं गुलों की भी।


 


ख़ार दिल में खिले हैं पहले ही।


 


***


 


अब जुगत है न पास आने की।


 


दूर तो काफिले हैं पहले ही।


 


***


 


क्या शिकायत करें जमाने से।


 


खुद से शिकवे गिले हैं पहले ही।


 


***


 


सुनीता असीम


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