है क्यूं बीच में अपने झगड़ा लगा।
बुरे बोल से जख्म गहरा लगा।
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जो बाजार में भीख था मांगता।
सभी को घराने का खासा लगा।
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कभी फूट पड़ती दिखाई न दी।
पलटता सा दुश्मन को पासा लगा।
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ज़रा चेहरे की बढ़ी जो चमक।
तो बदहाल भी आज संवरा लगा।
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नहीं मानते बात बच्चे तभी।
पिता ज़िन्दगी से वो हारा लगा।
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सरे राह बदनाम जो हो गए।
तभी पूछना बोल कैसा लगा।
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जो जैसा लगा कह दिया था वही।
कहेंगे न ऐसा कि वैसा लगा।
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सुनीता असीम
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