ये मुआ मोह छोड़ता ही नहीं।
मोक्ष का मार्ग खोजता ही नहीं।
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बोल कुछ भी जो बोल देता है।
क्यूं ये अंजाम सोचता ही नहीं।
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देख अन्याय को रहो चुप बस।
आपका ख़ून खौलता ही नहीं।
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ख़ार इसकी जुबान से निकलें।
प्यार जीवन में घोलता ही नहीं।
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इक गलत बात भी असर डाले।
बोल से पूर्व सोचता ही नहीं।
सुनीता असीम
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