सुनीता असीम

ये मुआ मोह छोड़ता ही नहीं।


मोक्ष का मार्ग खोजता ही नहीं।


***


बोल कुछ भी जो बोल देता है।


क्यूं ये अंजाम सोचता ही नहीं।


***


देख अन्याय को रहो चुप बस।


आपका ख़ून खौलता ही नहीं।


***


ख़ार इसकी जुबान से निकलें।


प्यार जीवन में घोलता ही नहीं।


***


इक गलत बात भी असर डाले।


बोल से पूर्व सोचता ही नहीं।


 


सुनीता असीम


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...