दिल हमारा आज हमको आजमाना होगा।
आरज़ू इसमें उठेंगी तो दबाना होगा।
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दिख रहा जैसा नहीं होता है सदा वैसा ही।
हर बशर का इस जहां में इक फ़साना होगा।
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दूसरों के हो रहें आगोश में उसकी तो।
सोचकर भी ये न तुमको फिर गवारा होगा।
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जो मिटा दे दुख जमाने में सभी के सारे।
क्या कहीं ऐसा भी कोई तो तराना होगा।
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प्यार होगा और हो बरसात खुशियों की बस।
सोचती हूँ मैं यही ऐसा जमाना होगा।
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सुनीता असीम
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